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जोशीमठ के आपदा-पीड़ित श्रेत्र पर प्रशासन ऐक्टिव

उत्तराखंड अपने अच्छे मौसम और बर्फीली पहाड़ी वादियों के लिए मशहूर है। यही कारण है कि वहाँ के रहने वालों को ‘पहाड़ी’ भी कहा जाता है। यही वजह है कि उत्तराखंड के यह पहाड़ और पहाड़ी जगह Tourist Spot बन चुकी हैं। लेकिन बदलता मौसम और Global Warming के कारण उत्तराखंड के पहाड़ों और ऊंची चोटियों से सटे जिलों का अब वातावरण और मौसम बदलता जा रहा है जिससे वहाँ के भवनों और पहाड़ों में दरारें भी देखने को मिली। 

मॉनसून के कारण जोशीमठ में हुई थी तबाही 

बीते 2023 में जनवरी के महीने में जोशीमठ में भारी तबाही हुई जिससे वहाँ के रह रहे लोगों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जोशीमठ में रहने वाले लोगों के भवनों में दरारें पड़ गई, वहाँ भूधंसाव हो गया, जोशीमठ के पहाड़ों के बीच से पानी के बहने के कारण कई मकान व होटल ध्वस्त हो गए और उनमें भी दरार पड़ गई। प्रशासन द्वारा वहाँ के सारे आवास एवं मकानों को खाली कराया गया जिससे कि लोगों को और पशु-पक्षियों को हानि न पहुंचे। जिन होटलों के कारण पहाड़ों को खतरा हो सकता था, उन्हें ढहा दिया गया और उनका मलबा हटा दिया गया ताकि भविष्य में कोई बड़ी रुकावट ना आए। 

इस आपदा के बाद विभिन्न तकनीकी संस्थानों के वैज्ञानिकों ने शोध किया और इसकी रिपोर्ट नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी को सौंपी जिसमें उन्होंने पहाड़ों की स्थितरता हेतु बुनियादी कदम उठाने की मांग की। सीबीआरआई रुड़की की टीम की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक 300 किलोमीटर चौड़ी और 3 से 4 मीटर तक गहराई की 400 दरारें पाई गई हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह दरारें जोशीमठ के आबादी क्षेत्रों में हैं इसलिए वहाँ नुकसान सबसे ज्यादा हुआ है और वहाँ प्रशासन को हालात सुधारने में भी बड़ी समस्या हो रही है। 

क्या है प्रशासन की पहाड़ों को सुधारने की प्लैनिंग ?   

जोशीमठ अभी भी खतरे से बाहर नहीं है। अभी भी वहाँ दरारें भरी नहीं हैं। आवासों के ड्रेनेज सिस्टम अभी ठीक न हो पाने के कारण बारिश का पानी पहाड़ों में समाने का खतरा है। प्रशासन जोशीमठ के भवनों में आई हुई दरारों के सुधार में लगा हुआ है। प्रशासन के अनुसार जोशीमठ के सभी ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करना अति आवश्यक है जिससे कि वहाँ का गंदा पानी रोड में न आए और रोड खराब न हो। उसके बाद जर्जर मकानों को ढहाना भी जरूरी है ताकि भविष्य में मौसम खराब होने पर उनके गिरने की वजह से मलबा न बने। 

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