जब दो बड़ी शक्तियों ने किया असुरों का संघार
दशहरा एक ऐसा त्यौहार जिसमें दो बड़ी शक्तियों ने दो महाअसुरों का संघार किया। इन दो शक्तियों में सबसे पहले नाम आता है देवी दुर्गा का जिन्होंने महिषासुर के साथ 9 दिन भीषण युद्ध करने के बाद दसवें दिन उसका संघार किया। दूसरी ओर दूसरी महाशक्ति थे श्री राम जो विष्णु के अवतार थे उन्होंने भी अपनी पत्नी के हरण करने वाले रावण जो कुल से तो ब्राह्मण था किंतु वह अपने कुकृत्यों से असुर बन गया उसका विनाश किया। इन दो महाअसुरों पर विजय प्राप्त करने उपलक्ष्य में इस दिन को विजयादशमी के नाम से भी जाना गया। हमारे देश में दशहरे के दिन हर गांव हर शहर में रावण का पुतला बनाकर उसका दहन किया जाता है और साथ ही यह कहा जाता है कि हमारे भीतर के रावण को अर्थात बुराईयों का भी इस अग्नि में अंत होना चाहिए।
इस प्रकार हुआ महिशासुर का विनाश
विजयादशमी एक ऐसा उत्सव जिसकी कथा ने नारी शक्ति का एक अतुलनीय उदाहरण विश्व में प्रस्तुत किया। जब महिषासुर नाम का असुर ब्रह्मा से वरदान पाकर स्वयं को अमर समझने लगा तो देवी दुर्गा ने उसका विनाश कर दिया। उस असुर के विनाश से सृष्टि को यह संदेश मिला कि किसी भी नारी शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए। जैसे देवी दुर्गा ने जगत माता होने का कर्तव्य निभाया और उस असुर से संसार को भयभीत देखकर उसका अंत कर दिया ठीक उसी प्रकार हर नारी अपने परिवार को हर प्रकार से सुरक्षित रखकर हमेशा जगदम्बा के रुप स्थित रहती है।
कैसे हुआ बलशाली रावण का विनाश?
श्री राम की रावण पर विजय को दिखाता दशहरे का यह पर्व हर वर्ष यह याद दिलाता है कि इतने बलशाली रावण से सामान्य मनुष्य के रूप में अवतरित श्री राम विजयी हुए। उसके पीछे का यह कारण है कि रावण ने नारी शक्ति को सदैव से कम आंका और इसी का परिणाम यह हुआ कि एक बार रावण युद्ध से पहले देवी सप्तशती के पाठ में बैठा था तब आदिशक्ति देवी दुर्गा की प्रेरणा से हनुमान जी एक सूक्ष्म सा रूप धारण कर उस पुस्तक में जा बैठे जैसे ही वह बैठे तो रावण ने एक मंत्र का उच्चारण गलत कर दिया। कहा जाता है इसका अर्थ था कि जो सभी मनुष्यों के दुखों को हरण कर देती है किंतु हनुमान जी के वहां बैठने से उस शब्द का अर्थ ही बदल गया और बन गया जो सभी के दुखों का कारण बनती है। उसी एक गलती के कारण प्रकांड विद्वान और बलशाली रावण का स्वयं देवी ने अंत रच डाला जिसके श्री राम निमित्त बने और रावण मारा गया।