सांस्कृतिक उत्सवों की दृष्टि से देखा जाए तो उत्तराखंड राज्य प्राचीन काल से ही सम्पन्न रहा जिसमें से सबसे प्रमुख उत्सव है रामलीला। उत्तराखंड में सैकड़ों वर्षों से होती आ रही रामलीला ने यहां के लोगों को सर्द रातों में लालटेन और मशाल की रोशनी में भी मंचन देखने को विवश किया है। कुमाऊँ की रामलीला प्रमुख रूप से गीत और नाट्य शैली में प्रस्तुत की जाती है। यहाँ दर्शकों का अधिक ध्यान आकर्षित रामलीला में जोकर द्वारा किया जाता है। जोकर के संवाद हमेशा कुमाऊंनी भाषा में ही होते हैं जिससे हर व्यक्ति जो क्षेत्रीय है उनका मनोरंजन भली प्रकार से हो। कुमाऊँ में मंचन के लिए दो महीने पूर्व से ही अभ्यास शुरु हो जाता है जिसे तालीम कहा गया है। रामलीला के विषय में यह कहा जाता है कि 1860 में यह अल्मोड़ा से शुरु हुई और फिर धीरे-धीरे यह कुमाऊँ के हर गाँव तथा गढ़वाल तक भी पहुँच गई। कुमाऊँ के अल्मोड़ा में हुक्का क्लब द्वारा आयोजित की गई रामलीला पूरे नगर और पूरे राज्य में सबसे आकर्षक रही है। अल्मोड़ा में होने वाली रामलीला ने अब दशहरे में होने वाले मेले का भी रूप ले लिया है।