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RTE Act के नियमों के तहत होगी उत्तराखंड के मदरसों की जांच!

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अनुसार जो बच्चे RTE के नियमों से मेल न खाने वाले मदरसों में पढ़ रहे हैं, उन्हें विद्यालयों में भर्ती कराया जाए। आयोग ने अपने समक्ष उत्तराखंड के सभी जिलों के अधिकारियों से एक रिपोर्ट मांगी जिसमें बताया गया है कि उत्तराखंड में करीब 150 हिन्दू बच्चे मदरसों में पढ़ रहे हैं।  

आखिर क्या रहा मामला?

आयोग ने उत्तराखंड के सभी मदरसों की मैपिंग करने के आदेश दिए थे। जिन मदरसों की मैपिंग नहीं हुई है, वहाँ पढ़ने वाले बच्चों को विद्यालयों में भर्ती कराने के आदेश दिए गए थे। प्रदेश में मदरसों की मैपिंग न होने पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने उक्त जिलाधिकारियों को दिल्ली पेश होने के लिए कहा था। छह जिलों के जिलाधिकारियों को 7 जून और सात जिलों के जिलाधिकारियों को 11 जून को पेश होने के आदेश दिए थे। 

दिल्ली हाजरी में रुद्रप्रयाग के डीएम के अलावा अन्य सभी डीएम पेश हुए। जिलाधिकारियों ने आयोग को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें शपथपत्र के साथ बताया गया है कि 150 हिन्दू बच्चे उत्तराखंड के मदरसों में पढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के अनुसार यह बात बहुत दुर्भाग्यपूर्ण एवं शर्मसार है क्योंकि उत्तराखंड में हर एक वर्ग के बच्चों के लिए, चाहे अमीर हो या गरीब, सब के पढ़ने के लिए सरकारी विद्यालयों एवं प्राइवेट विद्यालयों का इंतजाम है जो RTE मानकों से मेल खाते हैं। 

मदरसों के पाठ्यक्रम की होगी जांच  

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि सरकार मदरसों को funds देकर उनकी पूर्ण मदद कर रही है, लेकिन बच्चों का ऐसे मदरसों में पढ़ना जो RTE मानकों के अनुरूप नहीं चल रहे हैं, यह गलत है। उन्होंने कहा कि मदरसों में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम को जांचा जाएगा। साथ ही वहाँ पढ़ रहे शिक्षक आरटीई के मानकों के अनुसार शैक्षिक योग्यता रखते हैं या नहीं, यह भी जांचा-परखा जाएगा। 

क्या घट गई है उत्तराखंड में विद्यालयों की संख्या?

उत्तराखंड सरकार के लिए यह शर्म की बात है कि हिन्दू बच्चे मदरसों में पढ़ने जा रहे हैं। क्या उत्तराखंड में विद्यालयों की कमी है जो बच्चे दूसरे धर्म के शैक्षणिक संस्था में जाकर पढ़ रहे हैं? यह एक सोचने वाली बात है और इस पर गौर करना बेहद जरूरी है।  

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